श्रावस्ती में अदिन्न पूर्वक नामक एक महा कृपण ब्राह्मण को मट्ठकुण्डली नाम का इकलौता पुत्र था। सोलह वर्ष की आयु में मट्ठकुण्डली बीमार पड़ गया। अदिन्नपूर्वक ने धन बरबाद होने के डर से उसकी समुचित दावा न करायी। वह मरणासन्न व्यक्ति भगवान् को भिक्षाटन करते देख, उनपर मन को प्रसन्न करके मरकर तावतिंस नामक देवलोक… Continue reading मन ही प्रधान है (मट्ठकुण्डली की कथा)
मन ही प्रधान है (मट्ठकुण्डली की कथा)
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